बुधवार, 4 जुलाई 2012

नेता जी
what they speak

आज यही हमारा नारा है
कि हिन्दुस्तान हमारा है
इसकी माटी अपनी है
इसका पानी अपना है
सामान यहाँ का सब अपना है
यहाँ का बच्चा -२ अपना है
यहाँ का कोना-२  अपना है
हर चीज यहाँ कि प्यारी है
देश जान से प्यारा है
हिन्दुस्तान हमारा है

what they mean
चाहे बाट के खावो
ठाट से खाओ 
चाहे जैसे मौज उड़ाओ
 अंत में गाओ हिन्दुस्तान हमारा है 
चाहे जैसे करो घोटाले 
चाहे जैसे चुगो निवाले
चाहे जैसा चारा खाओ 
चाहे जैसी भैंस चराओ
चाहे जैसे मौज उड़ाओ
 अंत में गाओ हिन्दुस्तान हमारा है 
चाहे जैसे शेयर बाटो 
चाहे जैसे खेल खिलाओ
चाहे जैसे सिग्नल पकडाओ  
यहाँ कि जनता ऐसी है 
चाहे जैसी बीन बजाओ
चाहे जैसे मौज उड़ाओ
 अंत में गाओ हिन्दुस्तान हमारा है 

what they make sure

अंत में सुन लो इतनी बात
ख़याल चुनावों का तुम रखना 
उन छण में नारी से कुछ न कहना
कहना केवल, सुन लो माता सुन ले बहना 
मांगे जितनी मांगे जनता 
पूरी होंगी कह देना 
गर पड़े जरुरत सर अपना
उनके पाँव में रख  देना  
 बस एक बार जीत के आ जाओ 
फिर
चाहे जैसे मौज उड़ाओ
 अंत में गाओ हिन्दुस्तान हमारा है
 
 

प्यार है मेरा पास ही मेरे ,                                    पर शायद मुझको पता नही है ll
खामोश अगर हूँ मैं अब तक तो ,
                                   ये आदत है मेरी , मेरी खता नही है ll
दिल को बहलाते रहना ही,
                                   दर्द - ये - दिल की दवा नहीं है ll
आँखों की चिलमन उठा के देखो ,
                                  अन्दर आग बहुत है , बाहर यूँ ही धुवाँ नही है ll
काम बहुत है बाकि अब तक ,
                                  अभी तो कुछ भी हुआ नहीं है ll
जलने फिर भी लोग लगे हैं पर,
                                   मैंने अब तक कुछ भी कहा नही है ll
न ही दिल अब तक दिल से मिला है,
                                   और तन ने अब तक बदन छुआ नहीं है ll
महफ़िल में हुए तमाशे हैं टूटा हर पैमाना है,
                                   ये हाल है तब, जब जाम को लब ने छुआ नही है ll
मैं इस दिल का क्या करूँ इसकी
हर धड़कन में तुम्हारा नाम रहता है
आलम अब इस कदर बेकाबू है कि
हर बहती सांस बस तेरा पैग़ाम रहता है
 हर आहात पे मुड़ता हूँ देखता हूँ
कि तुम ही आई हो ?
कुछ जज़्बात!  कुछ अरमान! ले के आयी हो
हर हवा के   झोक़े में , बस
तुम्हारी खुशबु  ढूंढ़ता हूँ मैं
बूँद होंठो से,जो फिसली थी
हर बारिश में   ढूंढ़ता हूँ मैं
जाने मेरी दीवानगी का
क्या आखिरी अंजाम होगा
तुम तक पहुँच पाउँगा या
बस दूर ही से सलाम होगा
तुम्हें पाने कि हसरत नही है
तुम तो हमेशा पास में रहती हो
हर रग़ में बहती हो तुम
हर पल एहसास में रहती हो
 मैं तो कब से अपना चुका तुमको मगर इस बात को अब तुमसे बताना है
 तुम्हारी ख्वाहिशें अपनी,  फैसला अपना
उसे बस तुमको सुनाना है 

    
 

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

वो लम्हे

सोचता हूँ दिन रात
कैसे तुमसे कहूँ अपनी बात
हर तरफ पहरे हजार
हर  राह में खड़ी एक दीवार
तोड़ सकता हूँ हर पहरे को
टकरा सकता हूँ हर दीवार से
मगर मजबूर हूँ हर बार
हार जाता हूँ अपने ही प्यार से
और उन्ही तन्हाइयों में
जी रहा हूँ अब भी मैं
जो ग़मो  का सैलाब हैं
जिनमे जज्बातों का तूफान है
हर लम्हा गुजरता है मुश्किल  से
हर पल इक घमासान है
मगर,
ये मुश्किलें भी सुकून देती हैं
कई ख्वाब  इनके मेहमान हैं
और
इन्ही तन्हाइयों में
 मैं
 सपने देखता हूँ
ख़्वाबों को दिल में बसाता हूँ 
और उन्हें ख्यालों से सजाता हूँ 
ये टूटते हैं , बिखरते हैं
और खो  जातें  हैं  कई बार
मगर ,
मैं इन्हें ढूढता हूँ , जोड़ता हूँ 
और इन्हें सजोता हूँ हर बार
ये लम्हे 
मुझे ख़ुशी देते हैं 
मैं इन्हें शायद हमेशा याद रखूँगा
मेरे ख्वाब, जो मेरी जिन्दगी हैं
मैं इन्हें हरगिज
किसी भी हाल में बिखरने नहीं दूँगा





बुधवार, 14 दिसंबर 2011

wo!!!!!!!!!!!! in b.tech 1st to 4th year (part 1 &2 )

वो !

in B.Tech 1st  year
वो एक लड़की है 
कैसी है नही मैं जानता
देखा है करीब से पर नही पहचानता
हाँ दो आखें हैं , एक साधारण सा चेहरा 
और शायद सीने में एक दिल होगा 
बाकि तो दिखता है, हाँ मग़र
दिलोदिमाग ? कैसा है कहना मुश्किल होगा 
मग़र वो एक लड़की है ! 
तो लोग उसके पास जाना चाहते हैं 
पर कुछ डरते हैं कुछ दूर ही अच्छा समझते हैं
हाँ! कुछ फिर भी पास जाते हैं 
बातें करते हैं हँसते हँसाते हैं 
हाँ! कभी -२ नाराज़ कर जाते हैं 
कुछ समय बाद,  सब फिर ठीक 
कभी-२ मामला सिरियस हो जाता है 
तो सबको समझाया जाता है,  कि
वो एक लड़की है 
खैर उसके बारे में जो मैं जानता था
 एक दिन एक बड़े से पन्ने पे लिखा था 
घंटो लिखने के बाद देखा 
दो चार लाइन तो ठीक, पर 
नीचे का पन्ना ब्लैंक था 
मैंने अपना माथा पीटा.... और कहा 
वो एक लड़की है 
मैं उसे जितना जानता हूँ 
जितना पहचानता हूँ 
वो सिर्फ इतना कि 
वो एक इंसान है 
दो चार को बर्बाद करने का प्लान है 
अब आप पूछेंगे कैसे या क्यूँ 
तो मैं ये कहूँगा कि
वो एक लड़की है  
सिर्फ इतना ही कहूँगा मैं कि 
वो एक लड़की है 

वो !
in B.Tech 2nd year

वो एक लड़की है 
कैसी है नही मैं जानता
मग़र मुझे उससे प्यार है 
 हाँ!  दो आखें हैं , 
उनमे  मुझे अपना आशियाँ नजर आया है 
और एक साधारण सा चेहरा 
मुझे उसके खास होने का एहसास हो आया है
बाकि तो दिखता है, हाँ मग़र
दिलोदिमाग ? कैसा है कहना मुश्किल होगा 
मग़र उससे दूर रहना और भी मुश्किल होगा
क्यूंकि वो एक लड़की है ! और मुझे पसंद है 
तो मैं उसके पास जाना चाहता हूँ 
कभी हिचकता हूँ कभी खुद को  मना करता हूँ  
हाँ! फिर भी पास जाता हूँ  
बातें करता हूँ, अपने दिल को बहलाता हूँ 
 हाँ मामला सिरियस हो गया है 
सच कहूँ तो शायद प्यार हो गया है 
एक बार फिर हमने दिल को समझाया 
और उसके बारे में जो मैं जानता था
 एक दिन एक बड़े से पन्ने पे लिखा और पाया 
मेरे हर खवाब को एक चेहरा मिल गया है 
शायद मुझे मेरा हमसफ़र मिल गया है  
फिर  मैंने अपने दिल से कहा 
वो एक लड़की है 
मैं उसे जितना जानता हूँ 
जितना पहचानता हूँ 
वो सिर्फ इतना कि 
वो एक इंसान है 
और अब मेरा अरमान है

रविवार, 9 जनवरी 2011

यूँ तो सबका नया साल है ,
                     पर अपना तो वही हाल है 
वही तमन्ना दिल में मेरे
                             वही तरंगें तन में हैं
वही आरजू अब भी मेरी                            
                            वही उमंगें मन में हैं
वही रास्ते अब भी मेरे
                      मेरी अब भी वही चाल है 
यूँ तो सबका नया साल है ,
                     पर अपना तो वही हाल है 
  वही दर्द है दिल में मेरे
                   वही सिसक है आहों में
वही तड़प है मुझमें अब भी
                    वही कसक है बाँहों में
मन में बसी है तू ही अब भी
             दिल को बस तेरा ख़याल है
यूँ तो सबका नया साल है ,
                     पर अपना तो वही हाल है
दिन में याद सताती तेरी
              तेरा ख़्वाब दिखाती रातें
पहले से ही सुलग रहा हूँ
                और जलाती बरसातें
ये तो सच है अब भी उतना
               की तू मेरे मरने जीने का सवाल है  
यूँ तो सबका नया साल है ,
                     पर अपना तो वही हाल है 

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

एक दिन मैंने सोचा,
क्यूँ ना जिया जाय ?
दिल हमें भी दिया है खुदा ने ,
फिर मुर्दों सा क्यूँ रहा जाय?
निकले चौराहे पर
जिन्दगी जीने के लिए
कुछ यार मिल गए! बोले
चल मैखाने ,पीने के लिए
हमने सोचा !
इंसान जब पैदा होता है
तो पीता है, हम भी पीयेंगे
फिर इन्हीं दोस्तों के संग,
खुलकर जियेंगे
जम कर पिया , जी भर पिया
तब जाके बाहर निकला
देखा लोग डरने लगे हैं
देख कर किनारा करने लगे हैं
दिल खुश हुआ
मन में गुदगुदी होने लगी
दिल में हलचल हुई कुछ
फिर कुछ हरकतें होने लगीं
अचानक एक हरकत ऐसी हो गयी ,
सच कहें , फिर हमारी ऐसी तैसी हो गयी
मेरी इस दूसरी,पर शान कि जिन्दगी में
मेरी पहली मौत हो गयी ,
वाकया कुछ यूँ हुआ था
कि वो 'V ' day  कि शाम थी
तैनात पुलिस सरेआम थी
कोशिश मेरी बस एक कली तोड़ने की थी
पर वो कली नहीं फूल थी
और ! यही हमारी भूल थी
  वो खिल चुकी थी
किसी पुलिसवाले से ही मिल चुकी थी
उसी ने हमारा ये हस्न किया था
दूसरी जिन्दगी में मेरा पहला क़त्ल किया था
मैं आज भी , अपने उन यारों को
ख्वाबों में देखता हूँ ,
ढूढने उनको मारा-मारा फिरता हूँ
वो अगर मिल जायें तो ,
उन्हें मयखाने ले जाऊंगा ,
जमकर पिलाऊंगा ,
और कहूँगा , दम हो तो

 एक कली तोड़ के दिखाओ .

गुरुवार, 20 मई 2010

सोचता हूँ कुछ लिखूं ,

सोचता हूँ कुछ लिखूं ,
मगर क्या !
तुम्हें सबसे खुबसूरत लिखूं 
नहीं ये तो सच नहीं है,
हाँ मगर ये सच है 
तुम्हारे जैसा भी कोई नहीं है 
पहले सोचा की तुम चाँद की तरह हो 
फिर उसे देखा 
मगर उसमे तो दाग है
फिर सोचा की माहताब हो
उसे छुआ 
उफ़ उसमे भी आग है
मैं आगे बढ़ा
तो लगा तुम गुलाब हो
वह भी कोमल था
तुम सा ही शीतल था
मुझे यकीं हो रह था
पर ! अगले ही पल
कुछ
हाथों में चुभ रहा था
नहीं तुम गुलाब नहीं हो सकती
हरगिज नहीं फिर ?
क्या आसमाँ से उतरी परी
वही खूबसूरती, वही भोलापन,
वही जादू है तुममें, वही चुलबुलापन
पर परी तो कल्पना है !
क्या तुम भी?
नहीं हरगिज नहीं
तुम! तुम तो मेरी हकीकत हो
या यूँ कहूँ तुम ही मेरी हकीकत हो॥
ना तो तुम चाँद हो, ना आफ़ताब हो
ना तुम परी और ना गुलाब हो
तुम बस मेरा ख्वाब हो
वो ख्वाब जो देखा है मैंने
जागते और सोते हुए
हँसतें और रोते हुए
जिन्दगी के सपने सजाते हुए
तुमको अपना बनाते हुए
सच, ये सपने बहुत खुबसूरत हैं
बस इनको तुम्हारी जरुरत है
तुम बोलो,
क्या ये सपने सच होंगे कभी
हम दोनों,
एक दुसरे के होंगे कभी ॥

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

hindi poem competition

क्या करूँ विवेचन उन क्षण के ,
जो प्रथम मिलन के साक्षी थे।
रुक जाए यहीं पे कालचक्र ,
सब इसके ही आकांक्षी थे।।

गौरवर्ण वह चंचल मुख ,
रक्तिम अधरों से शोभित था ।
अपनी मैं क्या बात करूँ ,
स्वयं कामदेव भी उसपे मोहित था ॥

केश घटा से अविरल श्यामल ,
श्वेत कपोल कमल से कोमल थे।
जलधि समाये हो जिनमे
कुछ ऐसे उसके लोचन थे ॥

तरूणाई के सागर में
पुष्प पल्लवन प्रारम्भ हुआ था ।
वय सत्रह ही की थी बस
अभी तो यौवन का आरम्भ हुआ था॥

कटिप्रदेश था सिंह राज सा ,
चाल चली गजराज मगन थे।
दोनों अजेय थे महा रथी ,
किंतु परस्पर दुश्मन थे॥

ब्रह्मदेव की इस कृति पर किंचित
रति का मन भी रूठा था।
अपनी मैं क्या बात करूँ
मैं तो पत्थर सा बन कर बैठा था॥

देख के उस निर्मल सुन्दरता को
हृदय मेरा झंकार उठा था।
अब ये ज्ञात हुआ है तन-अंतर में
प्रीत का वो संचार हुआ था॥

पुरुषोत्तम मिश्रा
०६/०२/०२