बुधवार, 4 जुलाई 2012

मैं इस दिल का क्या करूँ इसकी
हर धड़कन में तुम्हारा नाम रहता है
आलम अब इस कदर बेकाबू है कि
हर बहती सांस बस तेरा पैग़ाम रहता है
 हर आहात पे मुड़ता हूँ देखता हूँ
कि तुम ही आई हो ?
कुछ जज़्बात!  कुछ अरमान! ले के आयी हो
हर हवा के   झोक़े में , बस
तुम्हारी खुशबु  ढूंढ़ता हूँ मैं
बूँद होंठो से,जो फिसली थी
हर बारिश में   ढूंढ़ता हूँ मैं
जाने मेरी दीवानगी का
क्या आखिरी अंजाम होगा
तुम तक पहुँच पाउँगा या
बस दूर ही से सलाम होगा
तुम्हें पाने कि हसरत नही है
तुम तो हमेशा पास में रहती हो
हर रग़ में बहती हो तुम
हर पल एहसास में रहती हो
 मैं तो कब से अपना चुका तुमको मगर इस बात को अब तुमसे बताना है
 तुम्हारी ख्वाहिशें अपनी,  फैसला अपना
उसे बस तुमको सुनाना है 

    
 

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