सोचता हूँ दिन रात
कैसे तुमसे कहूँ अपनी बात
हर तरफ पहरे हजार
हर राह में खड़ी एक दीवार
तोड़ सकता हूँ हर पहरे को
टकरा सकता हूँ हर दीवार से
मगर मजबूर हूँ हर बार
हार जाता हूँ अपने ही प्यार से
और उन्ही तन्हाइयों में
जी रहा हूँ अब भी मैं
जो ग़मो का सैलाब हैं
जिनमे जज्बातों का तूफान है
हर लम्हा गुजरता है मुश्किल से
हर पल इक घमासान है
मगर,
ये मुश्किलें भी सुकून देती हैं
कई ख्वाब इनके मेहमान हैं
और
इन्ही तन्हाइयों में
मैं
सपने देखता हूँ
कैसे तुमसे कहूँ अपनी बात
हर तरफ पहरे हजार
हर राह में खड़ी एक दीवार
तोड़ सकता हूँ हर पहरे को
टकरा सकता हूँ हर दीवार से
मगर मजबूर हूँ हर बार
हार जाता हूँ अपने ही प्यार से
और उन्ही तन्हाइयों में
जी रहा हूँ अब भी मैं
जो ग़मो का सैलाब हैं
जिनमे जज्बातों का तूफान है
हर लम्हा गुजरता है मुश्किल से
हर पल इक घमासान है
मगर,
ये मुश्किलें भी सुकून देती हैं
कई ख्वाब इनके मेहमान हैं
और
इन्ही तन्हाइयों में
मैं
सपने देखता हूँ
ख़्वाबों को दिल में बसाता हूँ
और उन्हें ख्यालों से सजाता हूँ
ये टूटते हैं , बिखरते हैं
और खो जातें हैं कई बार
और खो जातें हैं कई बार
मगर ,
मैं इन्हें ढूढता हूँ , जोड़ता हूँ
और इन्हें सजोता हूँ हर बार
ये लम्हे
मुझे ख़ुशी देते हैं
मैं इन्हें शायद हमेशा याद रखूँगा
मेरे ख्वाब, जो मेरी जिन्दगी हैं
मैं इन्हें हरगिज
किसी भी हाल में बिखरने नहीं दूँगा