क्या करूँ विवेचन उन क्षण के ,
जो प्रथम मिलन के साक्षी थे।
रुक जाए यहीं पे कालचक्र ,
सब इसके ही आकांक्षी थे।।
गौरवर्ण वह चंचल मुख ,
रक्तिम अधरों से शोभित था ।
अपनी मैं क्या बात करूँ ,
स्वयं कामदेव भी उसपे मोहित था ॥
केश घटा से अविरल श्यामल ,
श्वेत कपोल कमल से कोमल थे।
जलधि समाये हो जिनमे
कुछ ऐसे उसके लोचन थे ॥
तरूणाई के सागर में
पुष्प पल्लवन प्रारम्भ हुआ था ।
वय सत्रह ही की थी बस
अभी तो यौवन का आरम्भ हुआ था॥
कटिप्रदेश था सिंह राज सा ,
चाल चली गजराज मगन थे।
दोनों अजेय थे महा रथी ,
किंतु परस्पर दुश्मन थे॥
ब्रह्मदेव की इस कृति पर किंचित
रति का मन भी रूठा था।
अपनी मैं क्या बात करूँ
मैं तो पत्थर सा बन कर बैठा था॥
देख के उस निर्मल सुन्दरता को
हृदय मेरा झंकार उठा था।
अब ये ज्ञात हुआ है तन-अंतर में
प्रीत का वो संचार हुआ था॥
पुरुषोत्तम मिश्रा
०६/०२/०२
जो प्रथम मिलन के साक्षी थे।
रुक जाए यहीं पे कालचक्र ,
सब इसके ही आकांक्षी थे।।
गौरवर्ण वह चंचल मुख ,
रक्तिम अधरों से शोभित था ।
अपनी मैं क्या बात करूँ ,
स्वयं कामदेव भी उसपे मोहित था ॥
केश घटा से अविरल श्यामल ,
श्वेत कपोल कमल से कोमल थे।
जलधि समाये हो जिनमे
कुछ ऐसे उसके लोचन थे ॥
तरूणाई के सागर में
पुष्प पल्लवन प्रारम्भ हुआ था ।
वय सत्रह ही की थी बस
अभी तो यौवन का आरम्भ हुआ था॥
कटिप्रदेश था सिंह राज सा ,
चाल चली गजराज मगन थे।
दोनों अजेय थे महा रथी ,
किंतु परस्पर दुश्मन थे॥
ब्रह्मदेव की इस कृति पर किंचित
रति का मन भी रूठा था।
अपनी मैं क्या बात करूँ
मैं तो पत्थर सा बन कर बैठा था॥
देख के उस निर्मल सुन्दरता को
हृदय मेरा झंकार उठा था।
अब ये ज्ञात हुआ है तन-अंतर में
प्रीत का वो संचार हुआ था॥
पुरुषोत्तम मिश्रा
०६/०२/०२